आलेख

तदपि कहे बिनु रहा न कोई

भगवान के बारे में शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। यह भी कहा गया है कि उनके बारे में सम्पूर्णता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। तभी तो समस्त शास्त्र, वेद और पुराण नेति-नेति कह कर भगवान की ओर संकेत भर करते हैं। नेति का मतलब ऐसा नहीं। फिर कैसा......बस यहीं पर मुशिकल आती है। तो फिर किया क्या जाए। क्या निराश हो जाएं कि जब भगवान के बारे में कुछ कहा ही नहीं जा सकता, तो क्यों दिमाग खपाएं, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि जिससे जितना बन पड़े, भगवान के बारे में चिन्तन जरूर करे। यही चिन्तन भजन बन जाता है, जिसका बहुत बड़ा प्रभाव है। इसका प्रमाण श्रीरामचरित मानस के बालकाण्ड की एक चौपाई में मिलता है।
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहे बिनु रहा कोई।।
तहां वेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भांति बहु भाषा ।।
अर्थात-यद्यपि प्रभु श्रीरामचन्द्रजीकी प्रभुता को सब अकथनीय ही जानते हैं तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा। इसमें वेद ने ऐसा कारण बताया है कि भजन का प्रभाव बहुत तरह से कहा गया है। भगवान के गुणगानरूपी भजनका प्रभाव बहुत ही अनोखा है, उसका नाना प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है। थोड़ा सा भी भगवान का भजन सहज ही भवसागर से तार देता है।
वास्तव में चार स्थितियां भजन की ओर ले जाती हैं। एक धन-दौलत की इच्छा, दूसरी संकट से छुटकारे की चाह, तीसरी जिज्ञासा शांत करने की चाह और चौथी ज्ञान पाने की इच्छा। किसी भी स्थिति में भजन लाभकारी होता है। इसी प्रकार भजन पर चर्चा जारी रहेगी। कुछ आप कहें और कुछ हम। भजन से आपको कितना लाभ हो सकता है, इसके भी बहुत प्रमाण हैं, लेकिन सबसे बड़ा प्रमाण है-भजन आओ करके देखें। बस आज इतना ही।

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रहस्य प्रणाम का



प्रणाम करने की परंपरा दुनिया के हर कोने में है, लेकिन यह भारतीय संस्कृति का आधार है। शास्त्रों में जितने भी मन्त्रों का उल्लेख किया गया है, अधिकांश में नम: शब्द अवश्य आया है। यह नम: शब्द ही नमस्कार अथवा प्रणाम का सूचक है। जिस देवता का मन्त्र होता है, उसमें उसी देव को प्रणाम किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब हम किसी को प्रणाम करते हैं, तो हम अवश्य ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं। मनु ने तो प्रणाम करने के कई लाभ गिनाए हैं।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपि सेविन:, तस्य चत्वारि वर्धन्ते, आयु: विद्या यशो बलं।
अर्थात-प्रणाम करने वाले और बुजुर्गों की सेवा करने वाले व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल चार चीजें अपने आप बढ़ जाती हैं। यह समाज की विडंबना ही है कि बहुत से लोग प्रणाम करने की बात तो दूर, प्रणाम का जवाब देने से भी कतराते हैं। इस बात को एक शेर में बहुत ही अच्छे ढंग से कहा गया है।
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, यह नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो। हालांकि प्रणाम को एक मर्यादा में बांधा गया है कि लोग अपने से श्रेष्ठ को अवश्य प्रणाम करें, लेकिन देखने में आता है कि प्रणाम भी स्वार्थ के मकड़जाल में उलझ कर रह गया है। जिसका समय अच्छा होता है, उसे प्रणाम करने वालों की कतार लग जाती है और समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो श्रेष्ठ तो हैं, लेकिन यदि उनसे स्वार्थ न सधता हो, तो उन्हें प्रणाम कम ही लोग करते हैं। इस सन्दर्भ में गोस्वामी तुलसीदास ने तो गजब का आदर्श प्रस्तुत किया है।
सीय राममय सब जग जानी, करउं प्रनाम जोरि जुग पानी।
बन्दउं सन्त असज्जन चरना, दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।
मतलब यह कि वह सभी को प्रणाम करने का सन्देश देते हैं। उनके अनुसार सम्पूर्ण संसार में भगवान व्याप्त है, इसलिए सभी को प्रणाम किया जाना चाहिए। उन्होंने तो सन्त और असज्जन सभी की वन्दना की है। यही नहीं, श्रीरामचरित मानस में तो दुश्मन को भी प्रणाम करने का उदाहरण है। हनुमान जी को सुरसा निगल जाना चाहती है, फिर भी हनुमान जी ने उसे प्रणाम किया। चौपाई है-
बदन पैठि पुनि बाहर आवा, मांगी बिदा ताहि सिर नावा। एक बात और, किसी को प्रणाम न करने से अनजाने में ही सही, उसका अपमान हो जाता है। शकुन्तला ने दुर्बासा ऋषि को प्रणाम नहीं किया, तो उन्होंने क्रोधित हो कर शकुन्तला को श्राप दे डाला।
दरअसल, प्रणाम कोई साधारण आचार या व्यवहार नहीं है। इसमें बहुत बड़ा विज्ञान छिपा है। साधारण तौर पर उसका अर्थ है, हृदय से प्रस्तुत हूं। प्रणाम करने में प्राय: भगवान के नाम का उच्चारण किया जाता है, जिसका अलग ही पुण्य होता है। बहुत से मामलों में तो प्रणाम भी बाहरी तौर पर किया जाता है और हृदय को उससे दूर ही रखा जाता है। शायद इसी सन्दर्भ में कहावत प्रचलित हुई-मुख पर राम बगल में छूरी। इस तरह का प्रणाम करने से अच्छा है न ही किया जाए। प्रणाम एक ऐसी व्यवस्था है, जो समाज को प्रेम के सूत्र में बांध कर रखती है। इसके महत्व को समझा जाए, तो समाज से कटुता अवश्य दूर होगी। ऐसी मान्यता है कि यदि आप किसी साधक को प्रणाम करते हैं, तो उसकी साधना का फल आपको बिना कोई साधना किए मिल जाता है। प्रणाम करने से अहंकार भी तिरोहित होता है। अहंकार के तिरोहित होने से परमार्थ की दिशा में कदम आगे बढ़ता है। प्रणाम को निष्काम कर्म के रूप में लिया जाना चाहिए। वेदों में ईश्वर को प्रणाम करने की व्यवस्था है, जिसे प्रार्थना कहा गया है। यह कोई याचना नहीं, निष्काम कर्म ही है, जो परमार्थ के लिए प्रमुख साधन है। श्रीरामचरित मानस में कहा गया है, हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होइ मैं जाना। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, जो प्रेम के वशीभूत हो कर प्रकट हो जाता है। इसलिए चेतन ही नहीं, जड़ वस्तुओं को भी प्रणाम किया, जाए, तो वह ईश्वर को ही प्रणाम है, क्योंकि कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां ईश्वर नहीं है।
एक बात और, प्रणाम सद्भाव से ही किया जाना चाहिए, भले ही वह मानसिक क्यों न हो। शास्त्रों में इसके भी उदाहरण मिलते हैं। श्रीरामचरित मानस का सन्दर्भ लें, तो स्वयंबर के मौके पर श्रीराम ने अपने
गुरु को मन में ही प्रणाम किया था।
गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा, अति लाघव उठाइ धनु लीन्हा।
अर्थात-उन्होंने मन-ही-मन गुरु को प्रणाम किया और बड़ी फुर्ती से धनुश उठा लिया। इस प्रकार प्रणाम के रहस्य को समझ कर उसे जीवन में लागू किया जाए, तो अनेक रहस्यपूर्ण अनुभव होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं।

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रामचरितमानस एहि नामा
जो बात अधिक महत्वपूर्ण और प्रभाव डालने वाली होती है, वह प्राय: हमें याद हो जाती है। वह हमारे मानस पटल पर इतनी गहराई से अंकित हो जाती है कि कभी भी नहीं भूलती। रामकथा पर यह बात एकदम सटीक बैठती है। उसमें हर किसी को अपने जीवन की विसंगतियों और उनके समाधान की बात नज़र आती है। यही वजह है कि रामकथा से शायद ही कोई ऐसा हो, जो परिचित न हो। रामकथा की रचना सर्व प्रथम शिवजी ने की। उसे उन्होंने अपने मन में रखा और सबसे पहले पार्वतीजी को सुनाया। श्रीराम के चरित्र का निरूपण करने वाली कथा ने शिवजी पर इतना प्रभाव डाला कि उन्होंने इसका नाम रामचरितमानस रखा।
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइय विश्रामा।।
मन करि बिषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौं एहि सर परई।।
-श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-
अर्थात-रामचरितमानस वह सरोवर है, जिसमें विषयरूपी दावानल में जल रहा मनरूपी हाथी प्रवेश कर जाए, तो उसे शीतलता और सुख का अनुभव होता है। शिवजी ने इस कथा को कागभुसुण्डि को दिया और उनसे याज्ञवल्क्यजी ने पाया। उन्होंने उसे भरद्वाजजी को दिया। इस प्रकार कथा आगे बढ़ती गई, जो आज भी हमारे बीच पूरे प्रभाव के साथ उपलब्ध है। इस कथा का विवेचन समय-समय पर किया गया क्योंकि इसमें परिवार, समाज, देश और सम्पूर्ण जगत के बारे में सटीक विवेचन है। इसीलिए इसकी तुलना एक ऐसे सरोवर के समान की गई है, जहां नैसर्गिक सुख और आनन्द की हर वस्तु उपलब्ध है।
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।।
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि।।
-श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-
अर्थात-रामकथा कलियुग में सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली कामधेनु गौ है और सज्जनों के लिए सुन्दर संजीवनी जड़ी है। धरती पर यही अमृत की नदी है, जन्म-मरणरूपी भय का नाश करने वाली और भ्रम रूपी मेढकों को खाने वाली सर्पिणी है। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

आवत एहिं सर अति कठिनाई
रामकथा रूपी सरोवर कैसा है, इसका वर्णन गोस्वामी तुलसीदासजी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है। सम्पूर्ण कथा में चार संवाद हैं। भुशुण्डि-गरुण, शिव-पार्वती, याज्ञयवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास-सन्त। यही संवाद सरोवर के चार मनोहर घाट हैं। सात काण्ड सरोवर की सात सीढ़ियां हैं। श्रीराम की महिमा सरोवर के जल की अथाह गहराई है। श्रीरामचन्द्रजी और सीताजी का यश अमृत के समान जल है। सुन्दर चौपाइयां ही कमलिनी हैं। कविता की युक्तियां मोती पैदा करने वाली सीपियां हैं। सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे कमल हैं। अनुपम अर्थ, भाव और भाषा पराग, मकरन्द और सुगंध हैं। सत्कर्म भौंरे हैं। ज्ञान, वैराग्य और विचार सरोवर के हंस हैं। कविता की ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेक प्रकार की मनोहर मछलियां हैं। काव्य के नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसंग सरोवर के सुन्दर जलचर जीव हैं। पुण्यात्माओं, साधुओं और श्रीराम के गुणों का गान ही विचित्र जल-पक्षियों के समान हैं। सन्तों की सभा ही सरोवर के चारों ओर की अमराई है। श्रद्धा वसन्त के समान कही गई है। नाना प्रकार से भक्ति का निरूपण और क्षमा, दया व दम लताओं के मण्डप हैं। मन का निग्रह यम अर्थात-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, नियम अर्थात-शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान ही सरोवर के फूल हैं। ज्ञान फल है। श्रीहरि के चरणों में प्रेम उस फल का रस है। ऐसा वेदों ने कहा है।
भगति निरूपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना।।
सम जम नियम फूल फल ज्ञाना। हरि पद रति रस बेद बखाना।।
-श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-
इसके अलावा जो अनेक प्रसंगों की कथाएं हैं, वे ही इसमें तोते, कोयल आदि रंगविरंगे पक्षी हैं। कथा में जो रोमांच होता है, वही वाटिका, बाग और वन हैं। जो सुख होता है, वही सुन्दर पक्षियों का विहार है। निर्मल मन ही माली है। जो लोग इस चरित्र को सावधानी से गाते हैं, वे ही इस सरोवर के चतुर रखवारे हैं। जो इसे आदरपूर्वक सुनते हैं, वही मानस के देवता हैं। जो अतिदुष्ट और विषयी हैं, वे अभागे बगुले और कौवे हैं, जो यहां आने में हार मान जाते हैं।
तेहि कारन आवत हियं हारे। कामी काक बलाक बिचारे।।
आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।।
-श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-
आखिर इतने सुन्दर सरोवर पर जाने में कठिनाई क्या है-कुसंग ही भयानक रास्ता है। कुसंगियों के वचन ही बाघ, सिंह और सांप हैं। घर के काम-काज और ग्हस्थी के जंजाल ही दुर्गम पहाड़ हैं। मोह मद और मान ही बीहड़ बन हैं। कुतर्क ही भयानक नदियां हैं। जिनके पास श्रद्धा रूपी राह-खर्च नहीं है, सन्तों का साथ नहीं है और जिन्हें श्रीरघुनाथजी प्रिय नहीं हैं, उनके लिए रामकथा रूपी सरोवर अगम है। यदि कोई कष्ट उठा कर सरोवर तक पहुंच भी जाता है, तो उसे नींद रूपी ठण्ड सताने लगती है और वह सरोवर में स्नान नहीं कर पाता। जिनके मन में श्रीरामचन्द्र के प्रति प्रेम है, वे इस सरोवर को कभी नहीं छोड़ते। कोई यदि इस सरोवर में स्नान करना चाहता हैं, तो उसे मन लगा कर सत्संग करना चाहिए।

-श्रीकान्त सिंह


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हरि इच्छा बलवान
अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के सन्दर्भ में हाईकार्ट का जो फैसला आया है, उस पर हम सिर्फ यही कहना चाहते हैं-हरि इच्छा बलवान। दुनिया के सभी धर्म, संप्रदाय और पन्थ इस बात पर एकमत हैं कि कोई ताकत जरूर है, जो चर अचर में व्याप्त हो कर सम्पूर्ण संसार का संचालन कर रही है। उसी ने हमारी इस इच्छा को पूरा करने का संकेत दिया है। क्यों न हम उस मालिक की इच्छा का सम्मान करने के लिए आगे आएं। यहां हम कुछ लोगों के भाव साभार प्रस्तुत कर रहे हैं।
उनको भी जीत दे दे, हमको भी जीत दे दे।
इकबार अयोध्या से, दुनिया को प्रीत दे दे।।
हे राम ! हे खुदा ! मैं तुमसे ही मांगता हूं,
रहमत की भीख दे दे, मिल्लत के गीत दे दे।
इस बार फैसले में, ‘३६’ बने लोगों को,
‘६३’ की तरह मिलकर, जीने की नीति दे।
रामत्व के आंगन से, मतभेद मिटाने को,
शबरी का जूठन भी, खाने की रीत दे दे।
हिन्दू का, मुसलमां का, बहुमत तो सुदामा है,
तू कर कमाल सबको, कान्हा सा मीत दे दे।
हम एक छत के नीचे, बेखौफ होके सोयें,
‘पश्चिम’ की तरफ घर के, मजबूत भीत दे दे।
है आरजू कलम की, मेरे भी बगीचे को,
थोड़ी सी धूप दे दे, थोड़ी सी शीत दे दे।
- धीरेंद्र श्रीवास्तव
राम मंदिर पर माननीय उच्च न्यायालय का दस हजार पेज का फैसला आ गया । इस फैसले में राम जन्मभूमि मंदिर के इतिहास को समेटा गया है । राम मंदिर संघर्ष के 500 साल के इतिहास को जयचंद इतिहासकारों ने कभी मान्यता नहीं दी और न उसका कहीं पर उल्लेख किया । परन्तु इसके सैंकड़ों साक्ष्य नंगी आंखों से दिखाई पड़ते हैं । उच्च न्यायालय ने उस इतिहास पर अपनी मुहर लगा दी । यह किसी एक विशेष धर्म की हार या जीत नहीं है । ईश्वर की पूजा/इबादत किसी भी नाम से करो वह अंत में उस एक परमपिता की ही पूजा होती है लेकिन देश के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को दबाने, कुचलने की साजिश का कल पर्दाफाश हो गया । माननीय उच्च न्यायालय का फैसला इन जयचंद कम्युनिस्ट इतिहासकरों के चेहरे पर पड़ा जोरदार तमाचा है जिन्होंने आजादी के बाद की पीढी को अब तक बरगलाये रखा ।
-KM Mishra

मर्यादापुरुषोत्तम राम तो हर भारतीय के आदर्श है, चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम,, अपने देश से प्यार करना , महापुरुषों का आदर करना इस्लाम का हिस्सा है,, मेरा मानना है की हर भारतीय राम के चरित्र
से प्रभावित है चाहे वह कोई हो ! मंदिर / मस्जिद का झगडा सिर्फ सत्ता और पैसे का खेल है,, राम तो अयोध्या के कण कण में है,, अयोध्या का हर ज़र्रा राम जनमभूमि है और हर मंदिर राम का है, हर पवित्र और सच्चा हृदय अयोध्या है और उसमे राम मंदिर है !!
मेरा सब से अनुरोध है की मंदिर मस्जिद को लेकर आप के नज़रिए अलग अलग हो सकते है लेकिन राम के नाम पर या मस्जिद के नाम पर किसी वर्ग या समुदाय को निशाना न बनाये इससे न तो राम खुश होंगे और न रहीम !!
राशिद

राम अगर दिल में है तो वही मंदिर है और अगर दिल में नहीं हैं तो मंदिर में भी सिर्फ एक पत्थर की मूरत ही है, और एक मंदिर जो कि मात्र एक प्रतीक या प्रेरक है के लिए दिल नहीं टूटने चाहिए,लेकिन इसका एक पहलू सांसारिक भी है,,मंदिर और मूर्ति अधिसंख्य के लिए धर्म/अध्यात्म की ओर प्रेरक का कार्य करते हैं,अधिकतर को अपने धर्मस्थल में जाकर सुकून और शांति की अनुभूति होती है,चूँकि बाह्य का असर अंतर पर भी पड़ता है यह तथ्य है और सत्य है,कुछ लोग प्रबुद्धता के उच्चतर स्तर पर होने के कारण दिल के मंदिर के राम[जो की अध्यात्मिक स्तर पर महत्त्वपूर्ण है] का दर्शन पाकर सुकून पा सकते हैं लेकिन अधिसंख्य का क्या?फिर आज राम-मंदिर के विरोध में जो पक्ष खड़ा है उनमे निश्चित ही अधिसंख्य परिवर्तित मुस्लिम हैं जिनके पूर्वजों ने भी राम को ही पूजा होगा या उन्हें आराध्य माना होगा ,यह देखने की चीज़ है कि कैसे धर्म बदलते ही मान्यताएं और सोच बदल जाती हैं,लेकिन इस बात से मैं सहमत हूँ कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए,यह आस्था का विषय है राजनीति का नहीं.
-Samata Gupta, Kota

हमारा ‘निर्मल-मन’ ही श्रीरामजी की मनभावन पर्ण कुटी है. इस दृष्टि से प्रत्येक जनमानस का प्रथम पावन कर्तव्य है की हम श्रीरामचरितमानस को मनसा वाचा कर्मणा अपने जीवन में चरितार्थ करने का उपक्रम करें . अतः आज हमारे लिए “होइही सोई जो राम रचि रखा | को करि तरिक बरावन्ही साखा ||” का अनुसरण करना अभीष्ट है. जय श्रीराम !!!
-S. Bhartia
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Krishnakant Singh innervoice@hindustantimes.com
God! When one hears this word or thinks about it, many figures rush into one's mind.
Actually, when one remembers God at the time of trouble, one always gets relief because of his belief.
Remembering God gives us confidence and strength.
When in trouble, we need some support and by worshiping God we find that He is with us and he is helpful to us.
There was a man who had lost his job and he was searching for a new one. He had also firm faith in God. He appeared for interviews at many offices but didn't get a job anywhere. But because of belief in God, he had the confidence. He told himself, “I lost my job because it was God's wish and when I am not finding a job, it is again God's wish.“
After this kind of thinking, he never tried for a job and he started a small business.
After some time, he became famous and a rich businessman.
The moral of the story is: if you are failing in something, you need not be hopeless, and that you can try another thing with full confidence and with belief that it is God's wish and he will help you.
God is like fire. When you burn, you can get it; similarly when you remember God from your heart, you find him nearer you. God is everywhere but you cannot see Him and touch Him.
When you are in trouble, just close your eyes and try to feel that God is with you, no one can harm you and God will help you. This feeling gives you confidence to face the problem with the power of truth and God. If you are with truth and you believe in truth, then God is always everywhere with you. It works wonderfully well, try and see for yourself.

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Published on Nov 11 2010,Page 18
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